Dialysis Technician Meaning In Hindi

Dialysis Technician Meaning In Hindi

By Munam Wasif Dec 24, 2020 hemodialysis kya hai in hindi, hemodialysis meaning in hindi, hemodialysis process in hindi, हीमोडायलिसिस की प्रक्रिया, हीमोडायलिसिस क्या है

हेमोडायलिसिस खून से खतरनाक तत्वों को माशिन के द्वारा अलग करने की प्रक्रिया है। जो काम स्वस्थ किडमी आमतौरसे करता है, वही काम किडनी की बीमारी होने की स्तिथि में हेमोडायलिसिस द्वारा किया जाता है। किडनी बीमारी होने की स्तिथि में इलाज के लिए हेमोडायलिसिस सामान्य रूप उपयोग में आने वाला तकनीक है। इस प्रक्रिया में नोफ्रोलॉजिस्ट, डायलिसिस नर्स, डायलिसिस तकनीशियन तथा मरीज़ की भागीदारी होती है। हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया में खून को शरीर के बाहर निकाल कर कृत्रिम रूप से तैयार किए हुए किडनी, जिसे डाइलायज़र कहा जाता है, से साफ करने के बाद पुनः शरीर में डाला जाता है।

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स्वस्थ किडनी आपके शरीर से आवश्यकता से अधिक पानी, नमक तथा अन्य हानिकारक तत्वों को मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है। किडनी कुछ हार्मोन भी बनाता है। इसके अलावा हड्डी को मज़बूत बनाने के लिए आवश्यक विटामिन डी भी कुछ मात्रा में बनता है। शरीर में आरबीसी के निर्माण के लिए आवश्यक रिथ्रोपोइटिन भी किडनी ही बनाता है।

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जब किडनी काम करना बन्द कर देता है तो इस स्तिथि में शरीर से खतरनाक आवांक्षित पदार्थ बाहर नही निकल पाता है। यह शरीर में ही रह जाता है। इस कारण भूख लगना कम हो जाता है, थकान, कमज़ोरी, वज़न घटने, रक्चाप बढ़ने की समस्या तथा शरीर में अधिक पानी जमा होने इत्यादि की समस्या आने लगती है। शरीर में पानी जमा होने के कारण टखने में सूजन आ जाता है, फेफड़े में पानी जाने के कारण व्यक्ति जल्दी जल्दी सांस लेने लगता है।

हेमोडायलिसिस में मरीज़ के शरीर से खून बाहर निकाल लिया जाता है तथा इसे एक विशेष फिल्टर से गुज़ारा जाता है। इस फिल्टर को डाइलायज़र या कृत्रिम किडनी कहा जाता है। जब खून को इससे गुज़ारा जाता है तो यह फिल्टर खून से आवांक्षित पदार्थों तथा जल को अलग कर देता है।

इसके बाद फिर खून साफ होने के बाद वापस आपके शरीर में डाल दिया जाता है। यह आपके रक्तचाप को नियंत्रित रखता है तथा शरीर में आवश्यक रसायनों जैसे एसिड, पोटेशियम तथा सोडियम की मात्रा को खून में उचित मात्रा में बनाए रखता है। किडनी फेल होने की स्तिथि में मरीज़ को एक सप्ताह में 3 बार डायलिसिस करवाना पड़ता है। डायलिसिस का प्रत्येक सत्र 4 – 4 घण्टे का होता है। डायलिसिस का समय डायलिसिस विभाग की उपलब्धता तथा क्षमता पर निर्भर करता है।

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हेमोडायलिसिस से पहले एक ज़रूरी चीज़ वस्कुलर एक्सेस को तैयार करना है। वस्कुलर एक्सेस के तहत शरीर पर एक ऐसे जगह का चुनाव किया जाता है जहां से हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया के लिए खून निकाला एवं डाला जाता है। फिस्टुला, वस्कुलर एक्सेस का सबसे सामान्य प्रकार है।

वस्कुलर एक्सेस को हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया के कम से कम 6 से 8 हफ्ता पहले ही तैयार करना होता है। इसे तैयार करने के लिए एक छोटे ऑपरेशन के द्वारा हाथ में एक आर्टरी को एक नस के द्वारा जोड़ा जाता है। ऐसा इसके बहाव को तेज़ करने के लिए किया जाता है। हेमोडायलिसिस शुरू करने से पहले फिस्टुला में एक निडिल डाला जाता है तथा डायलिसिस के बाद इसे हटा दिया जाता है।

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जब किसी मरीज़ को अचानक से डायलिसिस की ज़रूरत होती है, तो इस स्तिथि में एक डायलिसिस कैथेटर कमर के पास या नस में डाला जाता है। यह 2 से 3 दिन तक उपयोग किया जाता है। इसके अलावा यह कैथेटर गर्दन के पास इंटरनल जुगुलर वेन में भी डाला जा सकता है। ये कैथेटर नली या बिना नली वाला हो सकता है। उसके अलावा गर्दन के पास एक त्वचा के अंदर एक नली बनाया जाता है। इसे प्रमाकैठ कहा जाता है। इसका उपयोग डायलिसिस के लिए कई महीनों से लेकर साल भर तक करना सुरक्षित रहता है। नली वाले कैथेटर में संक्रमण भी काफी कम रहता है।

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• अगर हेमोडायलिसिस की प्रक्रिया में सेंट्रल वेनस कैथेटर का उपयोग किया जा रहा है तो इससे संक्रमण फैलने की अधिक संभावना रहती है।

• वैसे तो डायलिसिस की प्रक्रिया में दर्द नही होता है, लेकिन फिस्टुला में निडिल डालते समय थोड़ा दर्द हो सकता है।

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• हेमोडायलिसिस के मरीज़ में रक्तचाप का ऊपर नीचे होना काफी सामान्य होता है। ऐसे में विशेष सावधानियां बरतने की ज़रूरत होती है।

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• सीमित आहार लेना पड़ता है। सोडियम का सेवन बन्द कर दिया जाता है। इसके अलावा मरीज़ को पोटैशियम युक्त चीजें जैसे ड्राई फ्रूट्स, नारियल पानी, केला इत्यादि लेने से मना कर दिया जाता है। डॉक्टर आपको पानी भी कम से कम पीने के लिए कह सकता है।

नोट- इस लेख में बताई गई जानकारियों को केवल जानकारी के तौर पर ही लें। इलाज संबंधित कोई भी फैसला डॉक्टर की सलाह पर ही लें।टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस(टिस) द्वारा शुरू किए गए डायलिसिस कोर्स में स्टूडेंट्स की रूचि बढ़ने लगी है। 15 स्टूडेंट्स के साथ शुरू हुए इस कोर्स में फिलहाल 200 से अधिक स्टूडेंटस हैं। टिस के वोकेशनल पाठ्यक्रम की डीन नीला डाबिर ने कहा कि अपेक्स किडनी केयर के साथ मिलकर शुरू किए गए बी.वीओसी इन डायलिसिस टेक्नॉलजी (वैचलर वोकेशनल कोर्स) में स्टूडेंट्स को डायलिसिस की प्रैक्टिल जानकरी दी जाती है। जिसके तहत उन्हें मशीन को ठीक तरीके से प्रयोग करने के साथ ही एक्सपर्ट द्वारा डायलिसिस के दौरान होने वाली जटिलताओं को सुलझाने की भी जानकारी दी जाती है। देश में किडनी संबंधी मरीजों की संख्या में हो रही बढ़तोरी को देखते हुए हमने इस कोर्स की शुरुआत की है। जहां स्टूडेंट्स को तीन साल की ट्रेनिंग और शिक्षा एक साथ उपलब्ध कराई जाती है।

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बी.वीओसी में प्रवेश लेने वाले स्टूडेंट्स को सप्ताह में एक दिन थिअरी की क्लास जबकि बाकि दिन सीनियर टेक्निशन के संग काम सिखने का मौका दिया जाता है। जहां वे मरीजो की देखरेख करने के साथ ही डायलिसिस की पूरी प्रक्रिया समझते हैं। टिस के डायलिसिस विभाग के डॉ.श्रीरंग बिछु ने कहा कि आजकल बहुत से लोग केवल डायलिसिस मे सर्टिफिकेशन कोर्स करके काम करते हैं। सर्टिफिकेशन कोर्स के तहत उन्हें उतनी जानकारी नहीं होती है। बी.वीओसी इन डायलिसिस टेक्नॉलजी कोर्स के अंतर्गत स्टूडेंटस को ट्रेनिंग पर फोकस किया जाता है, ताकि स्टूडेंट्स को अधिक से अधिक वो जानकारी दी जाए जिसकी उन्हें जरूरत होती है।

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2014 में शुरू हुए इस कोर्स के लिए मात्र 15 बच्चों ने पंजीकरण किया था जबकि 2016 के लिए इसी कोर्स के लिए पंजीकरण कराने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 50 के पार हो गई है। टिस से मिली जानकारी के अनुसार बी.वीओसी इन डायलिसिस टेक्नॉलजी कोर्स दो हॉस्पिटल के साथ मिलकर संचालित किया जात है। फिलहाल टिस के पास इस कोर्स के लिए 200 से अधिक स्टूडेंट्स हैं।

टिस में वोकेशनल पाठ्यक्रम की डीन नीला डाबिर ने बताया, 'देश में हर साल किडनी संबंधी मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। डायलिसिस टेक्निशियन के लिए शुरू किए गए बी.वीओसी इन डायलिसिस टेक्नॉलजी से जहां हेल्थ सेक्टर में कुशल लोग आएंगे वही इससे स्टूडेंट्स को बेहतर रोजगार भी मिलेगा।'

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जब व्यक्ति के दोनों वृक्क कार्य करना बंद कर देते है या कार्यहीन हो जाते है ,ऐसा सामान्यतः CRF(Cronic renal feiliar) में होता है । CRF में लंबे समय के बाद किडनी धीरे-धीरे कार्य करना बंद कर देती है ,मधुमेह पीड़ित व्यक्तियों में यह अवस्था पाई जाती है । जब किडनी कार्यहीन हो जाती है तो ऐसी स्थिति में रक्त में यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है , इसे यूरिमिया कहते है । यूरिया की अत्यधिक मात्रा शरीर के लिए हानिकारक है । अतः इससे रिलीफ पाने के लिए रक्त का डायलेसिस किया जाता है इसे हीमोडायलेसिस भी कहते है । यह एक कृत्रिम मशीन की सहायता से किया जाता है । इस मशीन को हीमोडाइलाइजर कहा जाता है । पीड़ित व्यक्ति की एक बड़ी धमनी को इस मशीन की नलिकाओं से जोड़ा जाता है । मशीन की ये नलिकाएँ सेलोफेन नामक पदार्थ की बनी होती है । सेलोफेन से बनी नलिकाएँ अर्द्धपारगम्य झिल्ली के रूप में व्यवहार करती है । हीमोडाइलाइजर में प्रविष्ट होने वाले रक्त में हिप्पेरिन मिलाया जाता है ताकि रक्त स्कंदित न हो । सेलोफेन की नलिकाओं के बाहर हीमोडाइलाइजर में एक द्रव भरा होता है जिसे अपोहन द्रव कहते है । इस द्रव की आयन सांद्रता रक्त प्लाज्मा के समान होती है , अन्तर केवल इतना होता है कि

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